ब्राह्मणत्व और सासन तंत्र

प्रजा तंत्र की व्यवस्था में यह अधिकार दिया गया है कि कोई भी सामान्य नागरिक राष्ट्रध्यक्ष या महा मंत्री बनकर देश का सासन संभाल सकता है. इसके लिए उसकी योग्यता से ज्यादा जन-समूह के समर्थन को ज्यादा महत्व दिया गया है. यही कारण है कि कई बार ज्यादा वोट हथियाने की स्थिति में अयोग्य व्यक्ति भी शीर्षस्थ पद पर पहुँच जाता है. वोट बैंक व्यवस्था को जब नेता और प्रजा एक व्यावसायिक प्रबंधन (Corporate Management) तरह प्रयोग करतें है तब प्रजा तंत्र की आत्मा पर आघात होता है और उसका परिणाम अंधेर नगरी और चौपट राजा की स्थिति से अलग नहीं होता.
Budget आज हम जो भ्रस्टाचार और महगाई की नयी उंचाईया, जाति और धर्म के आधार पर अलग होता समाज, नग्नता परोसते मनोरंजन के साधन, लड़कियों की असुरक्षा, और संस्कृति से बगावत देखते है वह इस बात का संकेत करता है कि आने वाला कल कितना भयावह हो सकता है.

वैसे तो कलयुग में ऐसी बातों का होना हमारे वेदों ने पहले ही बता दिया था. लगभग ६ हजार वर्ष पूर्व जब कलयुग प्रारम्भ हुआ तब से राजा और प्रजा दोनों ही अपना असली कर्तव्य भूलकर स्वार्थवादी परम्परा स्थापित करने में लग जाते है और पतन की पराकाष्ठा की नयी गहराईयाँ को छूकर इस धरा पर न भुलाने बाला घाव छोड़ जातें है. ऐसे समय में ब्राह्मणों की जिम्मेदारियां सबसे ज्यादा होती है, उनको सही रास्ता दिखाने के लिए बहुत अधिक कोशिश और परिश्रम करना पडता है. परुशराम और चाणक्य का उदाहरण हमारे सामने है, जिन्होंने तत्कालीन भ्रस्ट और पतित साम्राज्यों को उखाड़ फेका. अग्रेजों का देश से जाना भी जन-जागृति से संपन्न हुआ जो बिना दिशा निर्देशन के संभव न था. अगर सही निर्देशन हो तो जन सहयोग मिलता ही है. अगर ब्राह्मण निश्वार्थ जन-जाग्रति पर ध्यान दें तो समाज क्या विश्व भी अच्छा हो सकता है. हम सिर्फ निरीह प्राणी बनकर याचक न रहें बल्कि अपने अस्तित्व को पहचाने. हम सिर्फ अपनी दयनीय स्थिति की बात न सोंचे, बल्कि व्यवस्था बदलने पर ध्यान दें. धर्म युद्ध में आचार्यों को भी शस्त्र उठा लेने चाहिए ऐसा प्रमाण महाभारत में मिलता है. अगर ब्राह्मण चुप बैठेंगे तो कलयुग में पतन की गति को बल मिलेगा. प्रवचन से ज्यादा निर्देशन की महत्ता बहुत ज्यादा है. यदि ब्राह्मण चाहें तो व्यवस्था क्या देश और विश्व बदल सकतें है. ज्ञान हमारा सबसे बड़ा शस्त्र और कवच है. आवश्यकता है इसके सही उपयोग करने की.


करोड़ों का बजट गरीबों के लिए, जाता कहीं और

नए बजट का इन्तजार हो रहा है. सभी लोग आस लगाए बैठे हैं. कुछ चाहतें कि टेक्स कम हो जाए या फिर रियायत मिल जाए जिससे भविष्य के लिए कुछ बचत हो सके. कुछ चाहतें हैं कि सरकार ऐसे उपाय करे कि महगाई कम हो .उच्चस्तरीय सुख सुविधा जैसे अच्छी रोड़, पार्क, मकान, बिजली, पानी, चिकित्सा, स्कूल, कालेज आदि की व्यवस्था हो. या फिर ऐसा माहौल बने जिससे व्यापार और उद्योग जगत को लाभ पहुंचे और रोजगार के अवषर बढ़ें, जिससे सभी लोग अपना जीवन सतत स्वयं अच्छा कर सकें.

Budgetइनसे अलग कुछ ऐसे व्यक्ति भी हैं जो जानने के इच्छुक हैं कि सरकार कितने करोड़ रुपये किस योजना के लिए रखा रही है , और वे किस तरह सरकार की खर्च करो नीति से फ़ायदा उठा सकते हैं .जैसा कि हमारे पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी ने कहा था कि सरकार के द्वारा यदि १ रुपया खर्च होता हैं तो सिर्फ उसका १५ पैसा ही गरीब लोगों तक पहुँच पाता है. इस तरह यदि सरकार गरीबों के लिए १००० करोड़ खर्च करने की योजना बनाती है तो यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं हैं कि कितना इसमे में से सही जगह पहुंचेगा. लेकिन इसमे से बहुत सारा रुपया, नेताओं, सरकारी अफसरों, ठेकेदारों और बिचोलियों के पास पहुँच जाएगा. जितने घोटाले सामने आये हैं उनसे यह अनुमान लगाना आसान है कि कितने ही लोग आज सरकार की नीतियों के दुरुपयोग से करोड़पति और अरबपति हो गएँ हैं.

वित्त मंत्री जब बजट पेश करतें हैं तो बड़े गर्व से संख्याएँ बतातें हैं. जैसे कि ५००० हजार करोड़ गरीबी हटाओ योजना के लिए, २००० करोड़ बच्चों की शिक्षा के लिए, १०००० हजार करोड़ स्वरोजगार योजना के लिए इत्यादि. यह सब बाद में संबधिंत मंत्रालयों के पास खर्च करने के लिए उपलब्ध हो जाता है. बाद में इस बजट को खर्च करने या फिर ठिकाने लगाने की कवायद शुरू हो जाती है. यह सवाल फिर भी अनुत्तरित रह जाता है कि कितने गरीबों की गरीबी हटी या फिर गरीब ही हटा दिए गए. कितने बच्चों को उचित शिक्षा सरकारी मदद से मिली. या फिर कितने लोगों को रोजगार सरकारी योजना से मिला.

हमें विचार करना चाहिए कि यदि सरकार नीतियों में सुधार करे या फिर नीतियों को बदले. लोकपाल, लोकायुक्त, सतर्कता आयोग, सीबीआई इत्यादि जब कुछ गलत हो जाता है उसको पकडने लिए है. कोई व्यक्ति यदि २० करोड़ रुपये का गबन कर लेता है तो हमारी व्यवस्था क्या है. कई मामलों में गबन की गयी राशि को सरकार जप्त ही नहीं कर पाती. यदि किसी व्यक्ति को सिर्फ दो या तीन साल के लिए आरोपी बनाया जाता है और फिर कोर्ट में केस लंबित होने के बाद एक दशक या उससे भी अधिक समय के बाद कुछ नाम मात्र के लिए सजा होती है तो ऐसी स्थिति में यदि करोड़ों का गबन करने का मौका मिलेगा तो कौन छोडेगा.

सरकार को दो बातों पर गौर करना चाहिए:
१. योजनाये खर्च करने के आधार पर तय न की जाएँ. बल्कि हर एक मंत्रालय जनहित कार्यों के लिए लक्ष्य निर्धारण करे. इसी के अनुसार उनको धन मुहैया कराया जाए. बजट निर्धारण पिछले वर्ष के खर्च पर आधारित न हो.
२. घोटालेवाजों के सजा देनें से पहले यह सुनिश्चित किया जाए कि गबन की राशि पूरीतरह व्याज सहित सरकार जप्त करे. इसे हजारों मामले हैं जिनमे घोटालों की राशि का १०% भी सरकार जप्त नहीं कर पायी है. यदि सरकार ऐसे उपाय करे जिससे गबन की गयी राशि या फिर किसी भी गैर कानूनी ढंग से अर्जित की गयी सम्पति फिर से सरकारी खजाने में सामिल हो जाये तो वित्त मंत्री को वित्तीय घाटे की चिंता नहीं करनी पड़ेगी.


सोने में निवेश के अवसर

भारत में सोने में निवेश करना हमेशा से ही लोक प्रिय रहा. इसकी वजह हैं इसकी निरंतर बढती कीमतें, अंतरास्ट्रीय सस्तर पर स्थिर मूल्य , जरुरत के समय तुरंत बेचने की सहूलियत और घर परिवार में अआभूषणों की आपूर्ति.

gold पिछले ८० वर्षों से अधिक समय में सोने की कीमतों में लगातार वृधि दर्ज की गयी (कुछ एक सालों को छोडकर). साथ में दिए गए चार्ट से यह पता चलता है कि सोने के निवेश से साल दर साल जो फाइदा हुआ वह शायद ही किसी अन्य निवेश से हुआ हो. २००६ से लेकर २०११ तक सोने की कीमतें तीन गुने से ज्यादा बढ़ चुकी हैं.

विश्व में बिगडती अर्थव्यवस्था (खासकर अमेरिका और यूरोप इत्यादी में), अमेरिकी डालर के मुकावले रुपये की कमजोरी और निवेश के अन्य अच्छे विकल्पों के अभाव कुछ एसी वजह हैं जो सोने की कीमतों में और अधिक तेजी की ओर संकेत करतीं है. सोने में अधिक समय के निवेश से अच्छे लाभ की उम्मीद की जा सकती है.


हम भ्रष्टाचार का विरोध क्यों न करें?

हमारे डाक्टर साहब की साफ छवि के आधार पर जनता जनार्दन ने दूसरी बार देश की कमान उनके हाथ में सौपी और भरोषा किया के वे अपने अधूरे कामों को पूरा करेंगे. जिस तरह का जनादेश उनके पास है उससे यह मुमकिन था कि वे विपक्ष की परवाह किये बगैर अच्छे कामों को अंजाम दे सकते थे. लेकिन इस जनादेश का सबसे ज्यादा शोषण उनके अपने सरकारी तंत्र और मंत्रियों ने जी जान लगा कर किया. बहुत जल्दी ही हजारों लाखों करोड़ जिसकी गिनती लिखना मुश्किल है की हेरा फेरी हुयी. जिसने जिसे चाहा वैसे देश के खजाने और जनता को लूटा और विपक्ष और जनता को ठेंगा दिखा दिया. सबने कहा कि हमारे पास पावर है और पांच साल तक हम अपनी पावर का भरपूर इस्तेमाल करेंगे.

Corruptionकई लोंगो के नाम सामने आये, कुछ जेल भी गए. कुछ ने सिर्फ कुर्सियां छोड़ी. लेकिन तेवर किसी ने नहीं. और शर्म किसी के चहरे पर नजर न आयी. सबको मालूम था कि कुछ दिनों में लोग भूल जायेंगे. कुछ दिन जेल में हवा पानी बदलो और बाद सात पुस्तों तक दोनों हाथों से खर्च करो. जो पैसा पावर के इस्तेमाल से बनाया हैं उसे किसी का बाप भी वापस नहीं ले सकता. क्योंकि पिछले ४२ साल से कानून बनाने की कोसिस तो हो रही है लेकिन कानून बनेगा नहीं.

एक मुख्यमंत्री ने जाते जाते यह दावा भी किया कि वह ६ महीने में भ्रष्टाचार के आरोपों से मुक्त होकर फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे. लेकिन उन्होंने ऐसा कोई वादा नहीं किया को वो भ्रष्टाचार के आरोपों से आगे दूर रहेंगे. जनता को यह समझने में कोई मुश्किल नहीं होगी कि अमुक मुख्यमंत्री पुरे पांच साल अपनी पावर का इस्तेमाल करना चाहते थे लेकिन लोकायुक्त की एक रिपोर्ट ने उनके मनसूबे पर पानी फेर दिया.

एक राजनेता ने टीवी पर यह कहा कि अन्ना हजारे और उनकी टीम ने दलितों से बात नहीं की है कि वो क्या चाहते है. संविधान के ऊपर उंगली उठाकर अन्ना दलितों के भगवान डॉ. अम्बेडकर का अपमान कर रहें हैं. एसे भाषण कुछ एक दलितों को शायद खुश करें लेकिन सब जानते हैं कि दलितों की मसीहा कहे जाने वाली प्रदेश सरकार पर कितने भ्रस्टाचार के आरोप लगे हैं. क्या भ्रस्टाचार की समस्या से दलित बचे हुयें है?

आज सरकार अन्ना की बात सुनने के लिए इसलिए तैयार है कि आज जनता अन्ना के साथ है. सरकार कुछ दिन पहले बाबा रामदेव के आंदोलन का दमन कर चुकी है. ऐसे कितने ही आन्दोलन भ्रस्टाचार मिटाने के लिए लोंगो ने किये लेकिन सरकार ने किसी की परवाह नहीं की. क्योंकि भ्रटाचार मिटाने से सबसे ज्यादा नुकसान सरकारी नुमायांदो और जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों को होगा. सत्ताधारियों ने अन्ना की तुलना एक आतंकवादी से कर डाली. उन्होने कहा कि जिस तरह एक आतंकवादी आत्मघाती बनकर सरकार पर आघात करता है उसी तरह अन्ना जी आमरण अनसन पर बैठकर सरकार पर प्रहार कर रहें हैं. लेकिन समझने वाली बात यह है कि क्या आतंकवादी के साथ जनता खड़ी होती है. गाँधी जी सत्याग्रह करके और जनता के असहयोग आन्दोलन से ही देश को आजादी दिलवाने में कामयाव हुए. सरकार ने अभी जनता का असहयोग देखा नहीं है.

अगर जनता जनार्दन एक साथ हो जाये तो सरकार क्या किसी को भी बात माननी पड़ेगी. हम कब तक न आगे आयें? अभी सही समय है जब एक नयी दिशा नजर आयी है और एक नयी लहर जनता में है. एक नयी आजादी हमारी और अग्रषर हो रही है.


आदि गौड़ ब्राह्मण समाज (पुष्कर) के चुनाव संपन्न

श्री आदि गौड़ ब्राह्मण समाज गौड़ाश्रम पुष्कर (मेड़ता पट्टी ) के चुनाव रविवार (१९ जून २०११) को शांतिपूर्वक संपन्न हुए। इसमें अध्यक्ष समेत सभी पदाधिकारी एवं कार्यकारिणी सदस्य निर्विरोध निर्वाचित हुए। चुनाव में आलनियावास के केदारमल शर्मा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष जब्बर चंद गौड़ सुदवाड़, रामेश्वर लाल बबेरवाल पादू कलां एवं रामेश्वर लाल इंदौरिया बाकावास, मंत्री नरेंद्र कुमार शर्मा लामाना, कोषाध्यक्ष बुद्धराज बबेरवाल इटावड़ा सर्वसम्मति से चुने गए। इसके अलावा 25 सदस्य निर्वाचित हुए।


121 Crores Indian

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'121 Crores' wish for world cup. This was the headline of the Newspaper on 2nd April 2011. Another day, it said even God's wish has come true when India won the World Cup. No doubt, it was a thorough preparation and total coordination among team members, which has paid off. Congratulations! Every body did well. Even people who have watched, cheered, wished, worshiped and spent have made the event so extravagant that it became an event to be watched by the world.

In this process of the making this event so very important to each and every Indian, we have exploited every possible thing in the name of en-cashing the opportunity. It is astonishingly incorrect to say that God wished India to win the World Cup. Those, who have thought the God with human emotions about cricket, need an enlightenment about God. If at all, the God would think about India, He shall first think how to save innocent people from corruption, poverty and communalism. For God shake, please keep away name of the God from Cricket.

Every Indian wants the World Cup. This can be imagined by money grabbing business organizations with the support of frenzy media. If the Cup is so very important for us, why we were being deprived of it from last 28 years. One needs to check the ground realities. A good number of Indian population wishes for continued work, social security, poverty alleviation, eradication of corruption and communal harmony. The poor people in villages, need introduction of the World Cup and its usefulness. Some body should have taken a pain to go to villages and appraised the people to wish for the World Cup, specially in those areas where no access is available for TV or Newspaper. Then only the media line, '121 Crores wish for World Cup' would become true.

On 2nd April 2011, there was a full page coverage, how the World Cup was celebrated by a huge crowd in middle of the night at MG Road. There were other news items that Pubs and Hotels have had double the business in that night specially those offering liqueur. Our way of celebration is changing and quickly aligning to the western culture. Do we need to have a concern for our Indian Culture? Or our Culture has become a un-necessary baggage, more so for progressing lot of professionals and enterprenures. Because we don't want to annoy our grand-parents and parents, is this the only reason remaining to talk about Indian Culture? Is the Government has any role to play in stopping degradation of respect to our Culture, Values and Ethics? It is surprising to note, what we have lost in last ten years in human values is more than what was lost in last fifty years. When all over the world, Indian Culture has been recognized and respected for its uniqueness in inculcating values and giving meaning to life, can we keep our eyes closed?

Today (4th April 2011), we are All celebrating 'Bharatiya Nav Varsh'. It hurts when people reply back saying, that new year is celebrated on 1st January, not today. There is hardly any celebration on this day by the lot which has celebrated the World Cup. If this continues, we will some day forget celebrating our own festivals such as Deepavali, Holi, Raksha Bandhan, Krishna Janmastami etc. which fall as per Bharatiya Varsh Panchang. Government and Businessmen would be very happy in this situation as they wish all festivals to be celebrated on 'Sundays'. It can only happen in India.

When should we celebrate new year, I am leaving it to you decide.


Happy Republic Day

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India will be a 40 trillion dollar economy by 2030. The size of India's biotech industry is 5 billion dollars, second only to USA. Indian scientists have created a solar-powered touch screen computer cheaper than iPad. 90% of the world's computers run on a chip designed by an Indian. Indian Engineers have built the highest bridge in the world between the Dras and Suru rivers in the Himalayas. The most important branches of mathematics like calculus, trigonometry and algebra originated in India. The Indian Institutes of Technology produce the finest engineering talent in the world. India is only the 4 nation in the world to launch its polar satellite launch vehicle into space.
World's largest companies like Pepsico, Adobe, Citibank and Sigma-Aldrich have Indian CEOs. The deans of the Chicago Booth School of Business and the Harvard Business School are Indians. Four of the world's ten richest men are Indians. The world's highest selling detergent is an Indian brand. The largest employer in the world is Indian Railways, employing over a million people. India has the highest number of post offices in the world.
9 Nobel Prize winners have been Indians. The world's finest batsman, top ranked chess player and featherwieght women's boxer are all Indians.
India has so much to be proud off. Let us celebrate this 'Republic Day' with dedication and homage to all those who made our country great.
Jai Hind!


Have you thought, why?

Have you thought, why?
1. Rice is Rs.40/- per kg or more and Sim Card is free.
2. Pizza reaches home faster than Ambulance and Police.
3. Car loan @ 5% but education loan @ 12%.
4. Students with 45% get in elite institutions thru quota system and those with 90% get out because of merit.
5. A millionaire can buy a cricket team instead of donating the money to any charity. 2 IPL teams are auctioned at 3300 crores and we are still a poor country where people starve for 2 square meals per day.
6. The footwear, we wear, are sold in AC showrooms, but vegetables, that we eat, are sold on the footpath.
7. Everybody wants to be famous but nobody wants to follow the path to be famous.
8. Assembly complex buildings are getting ready within one year while public transport bridges alone take several years to be completed.
9. Lemon juices made with artificial flavors and dish wash liquids with real lemon.

FINAL ANALYSIS

People are often unreasonable, illogical and self-centered,
Forgive them anyway.

If you are kind, people may accuse you of selfish, ulterior motives,
Be kind anyway.

If you are successful, you will win some false friends and some true friends,
Succeed anyway.

If you are honest and frank, people may cheat you,
Be honest and frank anyway.

What you spend years building, someone could destroy overnight,
Build anyway.

If you find serenity and happiness, they may be jealous,
Be happy anyway.

The good you do today, people will often forget tomorrow,
Do good anyway.

In the final analysis, it is between you and God,
It was never between you and them anyway.
Give the world your best anyway.


ब्राह्मणों के बारे में कुछ जानने लायक तथ्य:

* ब्राह्मण समाज जनशंख्या के आधार पर भारत में दुसरे, एशिया में पांचवे और पूरी दुनिया में ग्यारहवे स्थान पर है.
* गुजरात के 70% और सम्पूर्ण भारत के 15% व्यवशायी ब्राह्मण हैं.
* ब्राह्मण समाज पूरी दुनिया में चौथे नंबर पर सबसे अमीर समाज है.
* भारत से विदेश जाने वाले समस्त लोगों में 35% लोग ब्राह्मण समाज के है.
* ब्राह्मण समाज लगभग 260 उपनाम (surname) उपयोग करता है,


Visvesaraya’s second candle

Reproduced from 'Mumbai Mirror' with due credit to Mr.Ajit Ranade

A glorious shining example from the life of a great civil servant

We are getting deluged by stories of scams involving civil servants. Some have signed subsidised flats for themselves. Some have allotted prime land for their own housing societies. Some have chosen to stay in government provided housing and rented their ill gotten flat at exorbitant rents to plush companies. It could be that many people were influenced by their peers.
If everyone is doing it (i.e. dipping into the flowing Ganga), then only a fool would refrain, wouldn't you say? Taking advantage of a public position for private gain seems to be the dharma of a civil servant, so how can anyone resist this dharma? It is but natural to dip a little bit.
After all these are not scams worth thousands of crores like the Telgi scam, or Satyam or the now famous 2G. You might get an argument that only a naïve public servant will remain scrupulous. All else are tainted or compromised. When they rub shoulders with politicians, and with their brethren (and sisters too) indulging in minor dipping into state treasury, it is impossible to find a role model. Right?

Wrong folks. Not only are there many honest civil servants across all sections (secretariat, sales tax, public works department, income tax, customs), but there is in fact a shining example from their tribe.
He is like their "kula devata", sort of a giant sacred mascot, the real original model of an upstanding civil servant. He was awarded the country's highest civilian award, the Bharat Ratna in 1955. He didn't lead a short life, but died at the ripe old age of 101 in 1962. He was in active public life for forty four years after his retirement in 1918.

Yes we are talking about the country's most famous engineer, technologist, administrator and civil servant, Sir M. Visvesvaraya (SMV). SMV was born in 1861 in Kolar district of the then Mysore state, and earned his B.A. in 1881. He then went to Pune to get his engineering degree from Pune College of Engineering in 1884, where he topped the final examination, and was appointed as the Assistant Engineer in Public Works Department (PWD) of the Bombay Presidency (as the state was called then).
His subsequent life was that of innovations, home bred solutions to difficult problems and a continuous quest for perfection. For example he found a solution to get drinking water in Sikkur (Sindh) using sand as a filter. He built a dam in Khadakvasla, designing the sluice gates in such a way so as to increase capacity and reduce flooding. When he was denied a promotion to Chief Engineer (because a Britisher was preferred) he resigned, and was immediately picked up by the Maharajah of Mysore. Impressed with his work, in three years the Maharajah made him Dewan (like a Chief Minister). In his life he was involved in many great works like the Krishnaraja Sagar Dam, Bhadravati Steel factory, Bank of Mysore, an automobile factory (Premier), an aircraft factory, etc.

When he was awarded the Bharat Ratna, he warned that he wasn't going to stop criticising the government. One of his memorable, and "Adarsh" incident was the day of his retirement. He went in a company car, and returned home in his own car, since he had retired. The action which spoke the loudest (as a civil servant), was his practice of reading at night in candlelight. He kept two candles, one of which was extinguished at 7pm and then the other one was lit. He said that for after hours private reading, he could not use the government provided candle, but the one paid for by himself.

With such a shining candle from our own history, we don't need any other "adarsh" civil servant.


जीवन में अनुसासन का महत्व (Discipline: Our Saviour in Life)

जीवन में अनुसासन की अनिवार्यता का उतना ही महत्व है, जितना कि जीवन में भोजन ओर पानी की आवश्यकता का. अनुसासन के बिना मनुष्य एक पशु के समान है. अनुसासन हमारे जीवन का एक अनिवार्य अंग एवं उसके हर पहलू पर समायोजित है. अनुसासन जो कि मनुष्य के नैतिक मूल्यों को बढ़ाता है तथा उसे समाज में एक विशिष्ट दर्जा भी दिलाता है. यदि हम हमारे महान पथ प्रदर्शकों. समाज सुधारकों जैसे स्वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद सरस्वती, राजा राम मोहन राय, सुश्री सुभाष चन्द्र बोस आदि की जीवनगाथा पढ़ें तो हमें इस बात का अहसास होगा कि हमारे यह महान समाज सुधारक अपने निजी जीवन में कितने अनुशासित थे. इनके महान कार्यों में अनुसासन का बड़ा ही महत्व रहा है. अनुसासन की पालना करने वाला या परखने वाला प्रत्येक व्यक्ति वह स्वयं है. व्यक्ति को अपनी अंतरात्मा की आवाज के अनुसार क्या करना चाहिए और क्या नहीं इसका निर्णय सोच समझकर सदैव करते रहना. इन्ही दो वाक्यों पर सदैव अपना ध्यान केन्द्रित रखना है. अनुसासन मनुष्य को निम्न प्रकार से प्राप्त होता है:
१. अपने परिवार के द्वारा जहाँ वह पलकर बड़ा होता है.
२. बाह्य वातावरण जिसमे वह ढलकर आगे बढ़ाता है.
३. शिक्षकों द्वारा शिक्षित होकर जीवन मैं सभ्य और अग्रणी होता है.
परिवार : हर बच्चे की प्रथम पाठशाला परिवार होती है जहाँ से उसके जीवन का प्रारंभ होता है. बच्चे को उसके माता-पिता से बहुत सारे गुण विरासत में मिलते हैं. परिवार में वह पलता है, रहन सहन, बातचीत तथा व्यवहार का उसके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है, जिसका एक बड़ा रूप संस्कार कहलाता है. अनुसासन से ही मनुष्य संस्कारित होता है. जितना मनुष्य अनुशासित रहेगा, उतना ही संस्कारित होगा.
बाह्य वातावरण: व्यक्ति की दूसरी पाठशाला, उसके आसपास का वातावरण है. बाल्यावस्था से ही मनुष्य अपने मित्रों की तलाश में रहता है, जिनके साथ वह खेले, हँसे तथा अपना सुख दुःख बांटे. बच्चा धीरे-धीरे बड़ा होकर घर से बाहर अपने आसपास के पड़ोसियों के बच्चों के साथ खेलने लगता है. बच्चे की सोचने और समझने की शक्ति बहुत ही तीव्र होती है. वातावरण के अनुसार वह उसमें ढलने लगता है. यदि घर के आसपास आपराधिक प्रवृति के व्यक्ति रहते हैं तो उनके संपर्क में आ जाने पर वह भी उनके कार्यों में सम्मलित होने की चेष्टा करेगा और भटकाव के मार्ग पर चलने को प्रेरित होने लगेगा. इसी प्रकार यदि बुद्धिजीवी अथवा साफ़ छवि वाली प्रकृति के लोग आपके आस-पास निवास करते हैं तो उनकी अच्छी आदतें एवं प्रवृति उस बच्चे में समाहित होने लगेंगी, जिससे वह आंतरिक रूप से अनुशासित होकर सुद्रढ़ता की ओर अग्रसर होगा. इन्ही अच्छी भावनाओं के प्रवेश से, वह समग्र रूप से विकशित होकर समाज और देश के एक अच्छे और सभ्य नागरिक के रूप में अपनी भागीदारी ईमानदारी से निभाएगा.
शिक्षक: "शिक्षक देश का निर्माता" कहलाता है. शिक्षा के माध्यम से, वह होनहार नागरिकों का निर्माण करता है. यदि बाल्यावस्था से ही अच्छी शिक्षा मिलती है तो व्यक्ति आगे चलकर अच्छे समाज का निर्माण करता है. व्यक्ति को सही दिशा शिक्षा से ही प्राप्त होती है. जिस समाज में शिक्षित व्यक्ति हैं वह समाज "अग्रणीय समाज" कहलाता है तथा उस समाज के अनुसासन, लगन और मेहनत से देश आगे बढ़ता है. अनुसासन के बगैर व्यक्ति उच्च शिक्षा का सदुपयोग नहीं कर सकता. शिक्षा के साथ-साथ अनुसासन जरुरी है क्योकि अनुसासन के बिना उस शिक्षा का फल दूसरों को नहीं बाँट सकता है. यदि व्यक्ति में अनुसासन है, तो वह उच्च आय प्राप्त अनुसासनहीन व्यक्ति से कई गुना श्रेष्ठ है.
अनुसासन रहित व्यक्ति हीन भावना का शिकार जल्दी हो जाता है. उसको पहले पता भी नहीं चलता और जब पता चलता है वह कई बुराइयों का शिकार हो चुका होता है. एसा व्यक्ति पतन की और अग्रसर हो जाता है. अनुशासित व्यक्ति से ही समाज उन्नति करता है. अनुसासन हमारे जीवन का एक अंग होना चाहिए जिसे हम सुबह उठने से लेकर रात्रि विश्राम तक पालन करें. व्यक्ति सही समय उठे, नित्यकर्मो से निपट कर अपने कामकाज का सही समय, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से निपटारा करे, घर पर अपने परिवार की आवश्यकताओं क्यों ध्यान में रखकर उनकी पूर्ति करे, बड़ो का आदर सत्कार और अपने सामाजिक जीवन का निर्वाह करे. ये अनुशासित होने की कुछ जरुरी आवश्यकताए है. इसमे कोई दो राय नहीं कि जितना व्यक्ति अनुशासित होगा, उतना ही वह कर्त्तव्यनिष्ठ होगा.
यदि व्यक्ति परस्थिती वस् इतना अनुशासित नहीं रह पता है तब भी व्यक्ति भी अपने परिवार के प्रति कर्तव्यों के पालन में अनुशासित रहना ही होगा तभी चलकर हमारे जो आज के बच्चे है, वह कल के "समाज निर्माता" बनेंगे तथा देश के विकास में में अपना योगदान कर सकेंगे. आज हमारे समाज में परंपरा से चले आ रहे काम धंदो के सीमित हो जाने की वजह से तथा भरी संख्या में शहरों की तरफ पलायन के कारण व्यक्ति में गरीबी और मलीनता घर कर रहीं हैं. इन सबसे से उबरने का एक ही उपाय है कि हम जीवन में अनुशासित रहे, जिससे भावी पीढ़ी को इसका लाभ मिलेगा तथा हमारा समाज देश में सबसे आगे रहेगा, ऐसी आशा हम कर सकते है.

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