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कैसे मनाएं जन्मदिन (How to Celebrate Birthday)?

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जन्मदिन (Birthday) को वैदिक विधी के अनुसार कैसे मनाया जाए, यह एक अनसुलझा प्रश्न है. वेदों के पाठन में बहुत से उद्दहरण मिलते हैं जिनसे यह पता चलता है कि जन्म दिन का महत्व ज्यादातर देवों, महानायकों और शाशकों तक ही सीमित रहा है. ज्योतिष में वर्षफल निकालने हेतु बहुत ही कारगर विधि है जिसके अनुसार वर्ष में घटित होने वाली घटनाओं की भविष्य वाणी की जाती है तथा जातक को पूरे वर्ष का सदुपयोग करने हेतु उचित सलाह दी जाती है. इस विधि में जातक के वर्तमान वर्ष में जन्मदिन का सही समय निकल कर वर्ष कुंडली के आधार पर ही भविष्यवाणी की जाती है. इस आधार पर यह पता चलता है कि ज्योतिष के अनुसार जन्मदिन का प्रत्येक मनुष्य के जीवन में बहुत महत्व है. इस विषय पर कई विद्वानों ने अपने विचार रखे है. उन्ही के समायोजन से ही जन्मदिन उत्सव को संपन्न करने की प्रेरणा मिलती है. सभी हिंदुओं के संस्कारों को ध्यान में रखकर जन्मदिन की शास्त्रोगत विधि इस प्रकार संपन्न होनी चाहिए:

जन्मदिन आने से पहले ज्योतिष के अनुसार जन्मदिन की सही तिथि और समय जान लेना चाहिए और जन्मोत्सव को इसके अनुसार ही मनाना चाहिए. यह जानने के लिए कप्यूटर पर उपलब्ध कुंडली सॉफ्टवेर (Kundali Software) की मदद भी ली जा सकती है. सबसे पहले अपने इष्टदेव की पूजा अर्चना कर उज्जवल भविष्य के लिए प्रार्थना करनी चाहिए. इसके वाद पूज्यनीय और वन्दनीय बुजुर्गों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए तथा विप्रजन को बुलाकर वर्ष कुंडली का विवरण सुनना चाहिए.

प्राचीन काल में देवो, महानायकों और शाशकों को बधाई देने वाले बहुत अधिक लोग होते थे. आज भी जन्मदिन पर बधाई और शुभकामना देने हेतु परिवार, संबंधी और हितेषीगण पधारतें है. शुभकामना कार्यक्रम हेतु घर या आयोजन स्थान को फूलों और लताओं से सजाएं. उनकी खिलती मुस्कान और खुशबू नए वर्ष के आगमन को नयी आशाओं से भरदेगी. अगर जन्मदिन छोटे बच्चे का है तो पालना, बड़े बच्चे का हो तो झूला, और व्यक्ति का हो तो सिंघासन रूपी आसन की व्यवस्था करें. इसके आगे एक बड़ी रंगोली बनाएँ. रंगोली के बीच में जन्मदिन के अनुसार दीप प्रज्वलित करें. यदि बच्चे की उम्र एक वर्ष हो गयी है तो दूसरा जन्मदिन मनाएं, दो वर्ष पूर्ण होने पर तीसरा जन्मदिन, तीन वर्ष होने पर चौथा जन्मदिन. इसके अनुसार ही दीप प्रज्वलित करने चाहिए. कोशिश करें कि दीपों को इस प्रकार सजाएं कि देखने वाला मनमोहित हो जाए. जन्मदिन पर बधाई देने वाले उपहार के साथ फूल जरूर लेकर आयें. वे सब उपहार आदि को रंगोली और दीपों की जगह के पास में रखते जाएँ. तथा फूल को जिसका जन्म दिन है उसको दें या फिर उपहार के साथ ही रख दें. कोशिश करें कि फूल सिर्फ लाल, गुलाबी या फिर पीले रंग के ही हों. सफ़ेद और नीलें रंग के फूलों का (ज्योतिषीय आधार पर) उपयोग न किया जाए तो अच्छा होगा. यदि सभी लोग एक साथ शुभकामना देना चाहे तो इस मंगलगान को सामूहिक रूप से गाकर बधाई दे सकतें हैं:

लाए ये वर्ष, तुम्हारे जीवन में खुशियाँ.
हम सब ये चाहें, तुम्हे याद रखे दुनिया.
हर दिन हो जीत, उमंगों के साथ,
युहीं सब मिलें, और बिखरती रहें खुशियाँ.

परिवार जन आने वाले मेहमानों का उचित स्वागत करते हुए उनके लिए जलपान और भोजन व्यवस्था करें तथा उन्हें उचित उपहार/ पारितोषक के साथ सम्मानित कर ही विदा करें. कार्यक्रम संपन्न होने पर दीपों को घर के बाहर या फिर ऊपर दीपावली सजाएं.

Know this : Why do we light a lamp?

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In almost every Indian home a lamp is lit daily before the altar of the Lord. In some houses it is lit at dawn, in some, twice a day – at dawn and dusk – and in a few it is maintained continuously (akhanda deepa). All auspicious functions commence with the lighting of the lamp, which is often maintained right through the occasion.

Light symbolizes knowledge, and darkness, ignorance. The Lord is the "Knowledge Principle" (chaitanya) who is the source, the enlivener and the illuminator of all knowledge. Hence light is worshiped as the Lord himself.

Knowledge removes ignorance just as light removes darkness. Also knowledge is a lasting inner wealth by which all outer achievement can be accomplished. Hence we light the lamp to bow down to knowledge as the greatest of all forms of wealth.

Why not light a bulb or tube light? That too would remove darkness. But the traditional oil lamp has a further spiritual significance. The oil or ghee in the lamp symbolizes our vaasanas or negative tendencies and the wick, the ego. When lit by spiritual knowledge, the vaasanas get slowly exhausted and the ego too finally perishes. The flame of a lamp always burns upwards. Similarly we should acquire such knowledge as to take us towards higher ideals.
Whilst lighting the lamp we thus pray:

Deepajyothi parabrahma
Deepa sarva tamopahaha
Deepena saadhyate saram
Sandhyaa deepo namostute

I prostrate to the dawn/dusk lamp; whose light is the Knowledge Principle (the Supreme Lord), which removes the darkness of ignorance and by which all can be achieved in life.

मांगलिक कुंडली

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ज्योतिष की परिभाषा में मंगल अग्नि प्रधान गृह होने के कारन अनिष्ट फल प्रदान करने में देर नहीं करता. यही वजह है की भावी वर वधु की कुंडली मिलाने में मांगलिक गुणों को मिलाना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. यह परंपरागत/ सनातन मान्यता है कि यदि वर की कुंडली मांगलिक है तो वधु की कुंडली भी मांगलिक होनी चाहिए. किसी भी कुंडली में यदि मंगल अशुभ फल देने वाला है तो वह किसी न किसी तरह अनिष्ट करेगा ही. लेकिन मंगल की कुछ स्तिथियाँ ऐसी होतीं हैं जो वर/ वधु या फिर उनके दाम्पत्य जीवन के लिए घातक होती हैं. इन्ही कुछ विशिष्ट स्तिथि वाली कुंडलियों को ही मांगलिक कुंडली कहा जाता है. साधारण ज्ञान रखने वाला व्यक्ति भी यह जान सकता है की अमुक कुंडली मांगलिक है या नहीं. किसी भी जन्म कुंडली में 'लग्न' कुंडली को ध्यान से देखो. लग्न कुंडली प्रायः सबसे पहले वाली कुंडली होती है.

यदि मंगल की स्तिथि यहाँ दिए गए चित्र की किसी भी स्तिथि से मेल खाती है तो कुंडली मांगलिक है. ज्योतिष के अनुसार अशुभ मंगल की प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादस स्थानों में उपस्थिति दांपत्य जीवन नष्ट करने वाली होती है. मांगलिक कुंडली कोई दोष या शाप नहीं है क्योंकि, मंगल कुंडली से बाहर तो हो नहीं सकता. सिर्फ मांगलिक कुंडली जानने के बाद किसी निष्कर्ष पर पहुँचना कठिन है. कुंडली मिलाने में यह भी देखा जाता है की मंगल शुभ फल देने वाला है या फिर अशुभ. क्या मंगली भंग योग भी बनता है. शनि और गुरु की शुभ स्तिथि मंगल के दोषों को समाप्त कर देने वाली है. धार्मिक परंपरा के अनुसार यदि मजबूरी में मांगलिक कन्या या वर का विवाह किसी अमांगलिक के साथ करना भी पड़े, तो विवाह मुहूर्त से पहले कन्या के फेरे विष्णु प्रतिमा से करने का उपाय मंगल को शांत करने वाला बताया है. तर्कसंगत यही है कि मांगलिक कुंडली होने पर, विवाह पूर्व ज्योतिषीय सलाह एक उचित समाधान हो सकता है.

वेदों की रचना कब हुयी?

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देवताओं का एक दिन मनुष्यों के एक वर्ष के बराबर क्यों होता है? वेदों की रचना कब हुयी? वेद, पुराण, उपनिषद और अन्य ग्रंथों से हिंदुओं के इतिहास की कड़ियाँ क्यों नहीं जुडती?

ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनके उत्तर प्राय: सभी जानने के लिए उत्सुक रहतें है. इनके उत्तर हैं, लेकिन आज तक उनको समझने की कोई सार्थक कोशिश नहीं हुयी या फिर उन्हें जन मानस तक नहीं पहुचाया गया. लोक मान्य बाल गंगाधर तिलक ने अपने १८९८ में अंगरेजी में लिखे ग्रन्थ ‘आर्कटिक होम आफ द वेदाज’ में वेदों के संग्रह को ८००० वर्ष से पूर्व का माना है. मानव जाति का आदि निवास उत्तरी ध्रुव पर था इस बारे में उन्होने विस्तार से विवेचना की है. पश्चिमी विद्वान डाक्टर वारेन ने अपने ग्रन्थ ‘पाराडाईज फाउंड और द क्रेडल आफ ह्यूमन रेस एट द नोर्थ पोल’ में लिखा है कि प्रथ्वी के ध्रुव प्रदेश पर प्रतिवर्ष १६ मार्च के दिन सूर्योदय होता है. इसके ४७ दिन पूर्व यानि कि २९ जनवरी को अरुण प्रकाश (सूर्योदय से पहले का उजाला) दिखने लगता है. इसी तरह उत्तरी ध्रुव पर २५ सितम्बर को सूर्यास्त हो जाता है, और इसके ४८ दिन बाद तक (१३ नवंबर) तक सायंकाल का प्रकाश रहता है. अतः ७६ दिन बिलकुल अँधेरा रह कर पुनः अरुण प्रकाश दिखाई देकर सूर्योदय होता है तथा सूर्य ९४ दिन तक क्षितिज पर रहता है. यह पहले भी होता था और आज भी होता है. अगर वेदों में देवताओं के एक दिन को मनुष्यों के एक वर्ष के बराबर माना है तो इसमे आश्चर्य क्यों हो.

समकालिक विद्वानों ने इसी भू मंडल पर स्वर्ग, अंतरिक्ष, भू-लोकों की कल्पना की. ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार आज से लगभग १३००० वर्ष पहले जहां ध्रुव था वहाँ पर ब्रह्माजी का कान्तिपुरी में शासन था. प्रथ्वी की धुरी (केंद्र) को विष्णु माना गया. केन्द्र ध्रुव से २४ अंश की दूरी पर है. इसी को नाभिकमल की डंडी कहा गया है. यह भी विदित है कि भूमध्य रेखा की सीध में सूर्य दिखने पर दिन-रात बराबर होते हैं. सूर्य ज्यों ज्यों उत्तर की तरफ बढ़ेगा, त्यों त्यों दिनमान बढता जायेगा. सूर्य जब उत्तर की हद में पहुचता है तब कर्क संक्रांति होती है और सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच का समय उत्तरी ध्रुव पर सबसे ज्यादा होगा. इसी तरह जब सूर्य दक्षिणी ध्रुव की तरफ बढ़ेगा तब उत्तरी गोलार्ध में दिनमान कम होता जाएगा. सूर्य जब दक्षिण की हद पर पहुच जायगा तक मकर संक्रांति होगी. जब वेदों का उद्भव हुआ तब कर्क संक्रांति और मकर संक्रांति की गणना सही थी. लेकिन समय के साथ आकाश में भू-मध्य रेखा के सीध की जगह प्रतिदिन बदल रही है. बदलते बदलते इसमे २३ दिन का अंतर पड़ गया है. इस कारण प्रत्यक्ष उत्तरायण २२ दिसम्बर (सूर्योदय की जल्दी शुरुआत) को ही दिखने लगता है जबकि सूर्य की मकर संक्रांति १४ जनवरी को होती है. गणना के आधार पर मकर संक्राति का समय प्रतिवर्ष ५० सेकंड पीछे हटता है. इस तरह ७२ वर्ष में १ अंश और १००० वर्ष में एक नक्षत्र का अंतर पड़ जाता है. वेदों में उल्लखित है कि उस समय पर अभिजित नक्षत्र ध्रुव प्रदेश पर था तथा भू-मंध्य रेखा पर हस्त नक्षत्र. वर्तमान में भू-मध्य रेखा की सीध उत्तरभाद्रपद नक्षत्र पर देखी जा रही है. गणना करने पर अभिजित नक्षत्र के ध्रुव पर होने का समय १५००० वर्ष पहले का सिद्ध होता है. इस तरह यह निर्धारित होता है कि वेदिक ग्रंथों का संकलन लगभग १३०००-१५००० वर्ष पूर्व का है. शतपथ ब्राह्मण ने अपने एक श्लोक में ‘कृतिका: प्राचीनों न च्यवंती’ में कृतिका नक्षत्र को उस समय माना हैं इससे इसका समय काल ३००० वर्ष पूर्व का सिद्ध होता है. महाभारत युद्ध के समय यहाँ रोहिणी नक्षत्र था जो इसके समय काल को ५००० वर्ष पूर्व सिद्ध करता है.

भुशास्त्रियों के अनुसार प्रथ्वी पर मौसम बदलता रहता है. आज के समय में उत्तरी ध्रुव पर मनुष्य जीवन ठण्ड की वजह से कठिन है, लेकिन प्राचीन काल में ऐसा नहीं था. डॉ. क्रोल ने लाखों वर्षों की गणना के आधार पर तीन ग्लेसिअल कालों की परिकल्पना की है. पिछले ग्लेसिअल काल को बीते हुए ८०००० वर्ष हो चुके है. इसके बाद हर २१००० वर्ष के अंतर पर उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर इंटर-ग्लेसिअल काल परिवर्तन होता है. इस वजह आज से १०५०० वर्ष पहले उत्तरी ध्रुव पर मौसम न ज्यादा गर्मी और न ज्यादा सर्दी वाला था और मनुष्य जीवन के लिए उपयुक्त था. समय के साथ उत्तरी ध्रुव ठंडा होता गया और मनुष्यों को स्वर्ग छोड़कर (भूमध्य रेखा की ओर) प्रथ्वी लोक पर आना पड़ा (जहां दिन रात हर दिन होतें है). वेदों की विवेचना में ऐसे कई तथ्य मिलतें है.

लक्ष्मी पूजन कैसे करें? (how to worship goddess laxmi on this diwali?)

Lakshmi

सर्व प्रथम अचल एवं चल सम्पतियों को देने वाली माँ भगवती की नूतन प्रतिमा एक चौकी पर कपड़ा बिछा कर उत्तर या पूरब में स्थापित करें तथा उस कपड़े पर केसर और चन्दन से अष्ट दल कमल बना कर माँ भगवती के चरणों में अपने घर की धन संपदा आदि अर्पित करें. देवी के बायीं और विघ्न विनाषक अमंगलों के हरने वाले भगवान गणेश जी की स्थापना करें . इसके बाद स्नान आचमन आदि से निवृत हो कर उत्तर या पूर्व मुख बेठ कर भगवान श्री हरी या अपने गुरु का ध्यान करें . इसके बाद अष्ट सिद्धियाँ देने वाली तथा नों निद्धियाँ देने वाली माँ भगवती के पूजन का संकल्प लें.

संकल्प: ॐ विष्णुए नमः, महालछ्मीए नमः, श्री गणेशाये नमः ,श्री श्वेतवारहकल्पे, वैवस्वमनावंतारे अष्ष्टाविंशतितमे, कल्युगे, कलिप्रथम चरणे, बोद्धावतारे, भूलोके, जम्बो दीपे, भारत खंडे, भारत वर्षे, --------- क्षेत्रे, ------नगरे --------संवत्सरे कार्तिक मासे कृषण पक्षे, अमावस्या नाम पुण्य तिथे, संवत 2066 सका 1931 अमुक नामं ------------सपुत्रं----------, अमुक गोत्रं-------------गोत्रं, अमुक ऋषि नाम -------------नाम, तस्य शुभ अवसरे यथा ग्रिहवालम महालक्ष्मी अस्ट सिद्ध दात्री, नो निधि दात्री, महालक्ष्मीसेय पूजनं परिवार सव्मित्र जन सहयोगे यथा शक्ति पूजनं कर्सते गणेशा देवता संकल्प कर्स्येते.
संकल्प करने के बाद गणेश जी का रिद्धि सिद्धि के साथ ध्यान करें तथा पञ्च उपचार से या यथा लाब्धौप्चार से या शोडास उपचार से पूजन करें. गणेश पूजन के बाद इसी उपचार से कलश पूजन करें .पूजन से पहले कलश को इशान दिशा (नॉर्थ ईस्ट) में ही स्थापित करना चाहिए. कलश पूजन के बाद में भगवान शिव पार्वती जी का पूजन तथा ओमकार पूजन करें , इसके बाद महालक्ष्मी का भगवान श्री नारायण जी के साथ आवाहन तथा पूजन करें एवं श्रृंगार की वस्तुएं भी भेंट करें . देवी के पूजन के बाद में रोली कुमकुम युक्त चावल से अंगो का पूजन करें.

ॐ चपलायै नमः (पैरों का पूजन करें)
ॐ चंचलायै नमः (जांघों का पूजन करें)
ॐ कमलायै नमः (कमर का पूजन करें)
ॐ कात्यायन्यै नमः (नाभि पूजन करें)
ॐ जगन्मात्रे नमः (पेट का पूजन करें)
ॐ विश्ववल्लभायै नमः (छाती का पूजन करें)
ॐ कमल्वासिन्यै नमः (हाथों का पूजन करें)
ॐ पद्नाननायै नमः (मुख पूजन करें)
ॐ कमलपत्राक्ष्यै नमः (नेत्रों का पूजन करें)
ॐ श्रियै नमः (सिर का पूजन करें)
ॐ महालक्ष्म्यै नमः (सर्वांग पूजन करें)

इसके बाद अष्ट सिद्धि पूजन करें उसके लिए कुमकुम युक्त चावल देवी की प्रतिमा के पास आठ दिशाओं में छोडें ॐ अणिम्ने नमः पूरब
ॐ महिम्ने नमः अग्नि कोने (दक्षिण पूरब )
ॐ गरिम्णयै नमः दक्षिण
ॐ लघिम्ने नमः नेर्त्रित्य (पश्चिम दक्षिण )
ॐ प्राप्तयै नमः पश्चिम
ॐ प्राकाम्यै नमः व्यावय (उत्तर पश्चिम )
ॐ ईशितायै नमः उत्तर
ॐ वशितायै नमः इशान (उत्तर पूरब )

इसके बाद अष्ट लक्ष्मी पूजन इस प्रकार करें:
लक्ष्मी की मूर्ति की आठों दिशाओं में कुमकुम युक्त चावल एवंम पुष्प लेकर आठों सिद्धियों का इस प्रकार ध्यान करते हुए पूजन करें .
ॐ आदि लक्ष्मीयै नमः
ॐ विद्या लक्ष्मीयै नमः
ॐ सौभाग्य लक्ष्मीयै नमः
ॐ अमृत लक्ष्मीयै नमः
ॐ काम लक्ष्मीयै नमः
ॐ सप्त लक्ष्मीयै नमः
ॐ भोग लक्ष्मीयै नमः
ॐ योग लक्ष्मीयै नमः

इस प्रकार अष्ट लक्ष्मी पूजन के बाद, महालक्ष्मी को धुप और दीप के दर्शन करांए तथा नेवेद्यम (मिठाई) अर्पित करें. इसके बाद देवी के हाथ में चन्दन लगायें तथा आचमन के लिए जल दे व् फल चढाये. अब पान का पत्ता अर्पित करें. देवी के चरणों में अब धन (रुपये / पैसे) चढाएं. माँ भगवती की आरती करें तथा अपने पापों के नाश के लिए प्रदक्षिणा तथा प्रार्थना करें . लक्ष्मी पूजन पश्चात् घर की देहलीज पर स्वास्तिक बनाकर देहली विनायक का पूजन करें .
अपने खाते को लिखने वाली स्याही का माँ कलि के रूप में पूजन करें एवं लेखनी का पूजन माँ सरस्वती के रूप में करें इसके बाद किसी थाली में केसर युक्त चन्दन व रोली से स्वास्तिक बना कर पञ्च गांठें हल्दी, धनिया, कमल गठा, अक्षत (चावल ) व दूब रख कर सरस्वती का ध्यान करते हुए पुन्जिका (बही खाता) का पूजन करें . कुबेर जी ध्यान व पूजन करें तथा हल्दी, धनिया, कमल गठा, दूब व पैसा तिजोरी में रखें तथा तराजू पर सिंदूर से स्वास्तिक बना कर मान सम्मान हेतु पूजन करें. फिर दीपक का पूजन करें तथा देवी की प्रधान आरती करें .
तत्पश्चात पुष्पांजली अर्पित कर प्रार्थना करें . इसके बाद माँ लक्ष्मी को शाष्टाग प्रणाम कर शुद्ध जल से अपने हाथ धोएं व संकीर्तन करें।

'ब्राह्मण ज्योति दीपशिखा' आदि गौड़ समाज की त्रिमासिक पत्रिका अखिल भारतीय श्री आदि गौड़ ब्राह्मण समाज द्वारा प्रकाशित की जाती है. इसमे वैदिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक जाग्रति से संबधित लेख प्रस्तुत होते हैं.

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